Vol.12, Issue 1 & 2
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Vol.12, Issue 1 & 2

Vol.12, Issue 1 & 2

SHODH SANCHAYAN

Vol.12, Issue.1 & 2, 15 Jul, 2021

ISSN  2249 – 9180 (Online)

Bilingual (Hindi & English)
Half Yearly

Print & Online

Dedicated to interdisciplinary Research of Humanities & Social Science

An Open Access INTERNATIONALLY INDEXED PEER REVIEWED REFEREED RESEARCH JOURNAL and a complete Periodical dedicated to Humanities & Social Science Research.

मानविकी एवं समाज विज्ञान के मौलिक एवं अंतरानुशासनात्मक शोध पर  केन्द्रित (हिंदी और अंग्रेजी)

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Index/अनुक्रम

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शब्द और अर्थ की अर्न्तध्वनियां उनके यहाँ अपना रूप लेकर प्रकट होती है। शब्दार्थ उनके यहाँ सिर्फ इशारों के हल्के पर्दे हैं। इन इशारों को वे संगीत की लय और आलाप की तरह साधाते हैं। शमशेर की असली समस्या शब्द और अर्थ की गूंजती अंर्तध्वनियेां को सही रूप देने की है शायद इसीलिए उन्होंने गज़ल, मुक्तक, गीत, सानेट, दोहा और छायावादी, रोमैण्टिक, सुर्रिलिस्ट, प्रयोगवादी तथा प्रतीकवादी काव्य की रचना एक साथ की है। शमशेर अपने मन में घुमड़ते भावों को रूप देना चाहते हैं। उनकी कोशिश है कि यह भाव अपनी लय के साथ ज्यों का त्यों उनकी कविता में आये। इसमें ही वे अपनी अभिव्यक्ति का सच्चापन मानते हैं। उनकी असली खोज का मैदान कला-माध्यम है। इसके लिए उन्होंने पर्याप्त तैयारी की है। उनकी कला में पौर्वात्य और पाचाय कला माध्यम रचे-बसे हुये हैं। उर्दू और हिन्दी की रीतिकालीन कविता का उनके मानस पर गहरा असर है। शमशेर सौंदर्य की लय का संधान करना चाहते हैं चाहे वह जिस भी कला माध्यम में उन्हें पकड़ में आ जाये। कला माध्यमों का अंर्तसम्बन्ध उनकी कविता में एक अलग तरह का संगीत भरता है।

The modern man is struggling for his identity in order to survive with dignity and equality. On the other hand, the downtrodden and the dalits who were considered marginalized in the society interprets the same identity in the form of repressed, downtrodden and exploited sections of the society. The sub-altern consciousness of the Dalits and Tribals have never been taken seriously, the sub-altern consciousness represents the consciousness of an oppressed nationality in our country. It represents anger, rejection, and protest of the existing dominant socio-economic, political and religious situations in India. But this includes positive human values for a new social order. The present paper is focused on Dalit Literature introduced in Indian English Writings with Devi’s consciousness towards Dalits who are exploited oppressed and marginalised in the society.

एकल परिवार मे पत्नी का महिलाएँ स्वछन्द विचरण करती हैं। क्योंकि उन्हें अपने सास-ससुर देवर-जेठ का कोई भय नही रहता। बालेन्दु शेखर तिवारी ने इस प्रकार की पत्नियों पर विशेष व्यग्यं किया है। आधाुनिक युग के एकल परिवारों के अन्दर पत्नी की स्थिति बहुत मजबूत हो गई हैं। पत्नी अपनी सहेली के साथ बाजार चली जाती हैं और पति घर पर रहकर घरेलू नौकर का काम करता है। इस प्रकार एकल परिवार में पतियों पर पत्नियॉ बर्तनों से प्रहार कर उन्हें घायल कर देती है। परन्तु संयुक्त परिवार में यह सम्भव नही है। यहॉ पतियों की पीडा पर दर्दनाक व्यग्ंय किया गया है। बालेन्दु शेखर के व्यग्यं साहित्य में अपने सम्पूर्ण तेवर के साथ उभरा है।

In the initial stages there was no compartmentalisation between Science and other kind of knowledge but as more as discoveries and inventions were made, the spirit of specialisation evolved and scientific discoveries were classified under one or other of basic Sciences viz. Physics, Chemistry, Biology, Astronomy and Genetics etc. In due course the progress and proliferation made in Science became so vast and fast that all almost 90 percent of everything we know in the Science has been generated in the last fifty years. The scientific discoveries and technological inventions have accelerated the process of social change reducing the World to a global village. Science and technology promise a better way of life and material satisfaction and gives hope of genuine optimum and excitement.

झारखण्ड के कोल्हान और पोड़ाहाट क्षेत्र में निवास करने वाली हो और मुण्डा जनजाति में मानकी मुण्डा शासन व्यवस्था प्रचलित है। इस व्यवस्था पर शिक्षा, उद्योग, सामाजिक गतिशीलता और नई प्रशासनिक व्यवस्था और पंचायती राज व्यवस्था का प्रभाव पड़ा है। जहाँ शिक्षा से एक ओर जागरूकता आई वहीं प्रवास भी बढ़ा। औद्योगीकरण का प्रभाव इस तरह पड़ा है कि लोग मिश्रित संस्कृति में अपनी जनजातीय संस्कृति को भूलने लगे हैं। प्रशासनिक व्यवस्था में आए परिवर्त्तन और नई पंचायती व्यवस्था परम्परागत प्रशासन को प्रभावित कर रही है। आधुनिकता के दौर में सामान्य जनता दो व्यवस्थाओं के पाट में पिस रही है। प्रस्तुत आलेख में इन्हीं प्रभावों और उन प्रभावों से मानकी मुण्डा व्यवस्था पर आए परिवर्त्तनों के आकलन का प्रयास किया गया है।

छठीं शताब्दी ईसा पूर्व में लौह तकनीक के विकास के फलस्वरूप आये सकारात्मक आर्थिक परिवर्तनों ने प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न आयामों को प्रभावित किया। निर्वाह अर्थव्यवस्था का मौद्रिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन इसी का प्रतिफल था। इस मौद्रिक अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत जिन सिक्कों का निर्माण किया गया उन्हें निर्माण तकनीकी के आधार पर आहत सिक्कों का नाम दिया गया। मुद्रा प्रचलन की देशी विधि में, जो आहत सिक्कों में देखने को मिलती है, शासकों का नाम या उनकी आकृति अंकित नहीं होती। इसलिए आहत सिक्कों के स्वरूप को लेकर प्रारम्भिक विद्वानों में मतभेद था। कनिंघम, व्हाइटहेड व मैकडोनाल्ड के अनुसार यह मौद्रिक कला के शैशव कालीन सिक्के समस्त सिक्कों में साधारणतम थे। किन्तु एलन4 का विचार है कि वे प्रारम्भिक सिक्कों से कही अधिक बढ़ चढ़ कर थे। विंसेन्ट स्मिथ की राय है कि हिमालय से कन्याकुमारी तक उनकी शैली एवं भारक्रम में गजब की एकरूकता थी। कनिंघम, व्हाइटहेड तथा मैक्डोनाल्ड जैसे विद्वानों का नजरिया सिक्के के पूर्ण विकसित पाश्चात्य परम्परा के सन्दर्भ में बताया गया दृष्टिकोण था। भारत में जब से विदेशी परम्पराओं के सिक्के हिन्द-यवन, शक, लव, कुषाण और रोमन सिक्कों के रूप में प्राप्त होने लगते हैं, तब से यह बात हो जाती है कि विदेशी परम्परा के अन्तर्गत सिक्का चलवाना राजा का ही विशेषाधिकार था, उस पर उसका नाम, उसकी उपाधि और अधिकांशतः उसका चित्र भी अंकित होना अनिवार्य था।

हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहासके द्वितीय खंड में हिन्दी गद्य की विविध विधाओं का विश्लेषण किया गया है। इस क्रम में हिन्दी निबंध काविकास, हिन्दी नाटक का विकास, हिन्दी एकांकी का विकास, हिन्दी उपन्यास का विकास, हिन्दी कहानी का विकास, हिन्दी आत्मकथा का विकासऔर हिन्दी आलोचना का विकास शीर्षक से सात खण्डों में हिन्दी गद्य-रूपों के विकास का परीक्षण किया गया है। आधुनिक काल से पूर्व हिन्दी गद्य कीस्थितियों के परिचय-विश्लेषण करने के क्रम में गणपति चन्द्र गुप्त ने क्रमशः राजस्थानी गद्य, मैथिली गद्य, ब्रजभाषा-गद्य और खड़ी बोली के प्रारंभिकरूप को विस्तार से उद्घाटित किया है।

Sustainable development has now become a prime concern of socio-economic and political scenario. It is not a problem of a nation or country in particular if it is not achieved but the problem of whole world in order to maintain peace and harmony. How we can attain the sustainable development? Is the need to hour, for this, 17 goals and 169 targets have been prepared by UN organization.In this paper the researcher will focus on the 16th goal of Sustainable Development Goals (SDGs); Peace, Justice and institution with reference to Bertrand Russell’s Philosophy of peace and inclusiveness. Russell was a great mathematician who turned to the philosophy.

The value system accepted by our teacher will influence the choice & selection of values made by the students. Teacher should develop a very positive attitude towards all personal values & inculcate such values in the pupils Teacher should give to children a life-building, man-making & character making education.''

The teacher should adopt his own technique in order to inculcate essential values by their own personal values & ideals. School as a subsystem of overall social organization is expected to act as an agent of preserving & strengthening the social structure & should therefore implement the value system of the society in terms of aims & objectives for various school programmes , Keeping in view the requirements of providing facilities for all round development of the pupils/ students.

The value system accepted by our teacher will influence the choice & selection of values made by the students. Teacher should develop a very positive attitude towards all personal values & inculcate such values in the pupils Teacher should give to children a life-building, man-making & character making education.'' The teacher should adopt his own technique in order to inculcate essential values by their own personal values & ideals. School as a subsystem of overall social organization is expected to act as an agent of preserving & strengthening the social structure & should therefore implement the value system of the society in terms of aims & objectives for various school programmes , Keeping in view the requirements of providing facilities for all round development of the pupils/ students.

काव्य का स्वरूप अत्यन्त व्यापक है जितना व्यापक है उतना ही सूक्ष्म भी। अतः इसे लक्षण की परिधि में बाँधना दुष्कर है। आदिकाल से ही काव्य को लक्षणबद्ध करने के प्रयत्न होते रहे हैं किन्तु उसका विकासशील रूप लक्षण एवं परिभाषाओं की सीमारेखा का निरन्तर उल्लघन करता रहा है। काव्य की व्यापकता का प्रमाण यही है कि उसकी सत्ता सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। विश्व अनक रूपात्मक एवं अनेक भावात्मक है। मानवीय भावों का पर्यालोचन एवं साधारणीकरण काव्य के माध्यम से होता है।

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5. भारतीय विश्वविद्यालयों में मानविकी एवं सामाजिक विज्ञानं के अधिकांश शोध हैं –
 
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